आखिर क्यों मनाते है दशहरा उत्सव ? क्या है दशहरा पूजा का महत्व

आइये जानते हैं आज हम आपको बताते हैं की क्या है दशहरा पूजा ?? क्यों है इसका इतना महत्व !!

आखिर क्यों मनाते है दशहरा उत्सव ? क्या है दशहरा पूजा का महत्व
आखिर क्यों मनाते है दशहरा उत्सव ? क्या है दशहरा पूजा का महत्व

धार्मिक परंपरा के अनुसार यह दशहरा यानी विजयदशमी इसी दिन रावण पर राम ने विजय प्राप्त किया  था. उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला यह त्योहार हमें यही सीख देता है, बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है. चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो.

बुराई को खत्म करने के लिए रावण का पुतला बनाकर उसका दहन किया जाता है.मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि रावण एक विद्वान और तेजस्वी ब्रांहण था. यह दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है.जो अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है.

शास्त्रों के माध्यम से कहा जाता है की रावण वेदों के साथ ही साथ युद्धशास्त्र का भी ज्ञाता था.वह बहुत ही विद्वान और शिव भक्त था. उसकी भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दिया था कि उसे न देव मार सकेंगे न दानव.लेकिन फिर भी रावण मारा गया क्योंकि समस्त गुणों के होते हुये भी रावण में एक बुराई थी वह था उसका अहंकार.

क्योंकि कहा जाता है की व्यक्ति का अहंकार कभी टिकता नहीं वह नष्ट ही हो जाता है.हमेशा धर्म की जीत होती है. रावण तीनों लोकों को जीत लेने और किसी के द्वारा भी नष्ट न होने का वरदान को प्राप्त कर उसके मन में अहम की भावना जाग्रत हो गई उसे अपने जीवन में अहंकार हो गया.वह अपने आप को श्रेष्ठ मानने लगा और यह समझ बैठा की मेरे जैसा कोई नहीं है.

कहा जाता है की ब्रह्मांड के हर एक राज्य को जीतकर रावण सभी देवताओं को बंदी बनाकर अपनी लंका ले आया और उन्हें उन सभी को अपना दास बना लिया. जब रावण का पाप बहुत बढ़ गया तो भगवान् विष्णु ने धरती पर मनुष्य अवतार लिया, जिन्हे हम भगवान् राम के रूप में जानते हैं. रावण भगवान् राम की पत्नी सीता (जोकि लक्ष्मी अवतार हैं ) का अपहरण कर लिया, तब भगवान् राम ने हनुमान की सहायता से लंका में जा कर रावण का अंत किया। जैसा कि सदियों से चली आ रही कहावत कहती है, घमंड तो राजा रावण का भी नहीं रहा अंतत: देवता राक्षसों से न मारे जा सकने वाले रावण को मनुष्य रूप धारण कर भगवान राम ने उसका अंत किया था.

रावण को अहंकार हो गया था की मैं अब अमर हूँ मुझे कोई भी नहीं मार सकता है.और वह बुरे कर्मों की ओर बढ्ने लगा पर हमेशा जीत तो सच्चाई व अच्छे कर्म की होती है.किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन में अहंकार नहीं होना चाहिए ।व्यक्ति को अपने धन दौलत सुख संव्रधी जन ,बल आदि का अहम नहीं होना चाहिए. ये सब एक दिन छूट जाते है कुछ काम नहीं आते इनका सद उपयोग करो अहम नहीं। क्योंकि व्यक्ति का जीवन सीमित है। उसे यह तन छोड़ना ही होगा.

आम जीवन में भी हम ऐसे लोग देखते हैं.जरा सा पद, जरा-सा पैसा, जरा-सा अधिकार प्राप्त करने पर भी कभी-कभी इंसान को घमंड आ जाता है.पर यह आपकी गलत सोच है व्यक्ति को सदा सद भाव के साथ सहजता से जीवन व्यतीत करना चाहिए बुराई को त्याग अच्छाई को ग्रहण करें.यह भी एक विजयादशमी का संदेश है.

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