अक्षय तृतीया और इनका महत्व

मान्यता है कि आज किए गए दान का फल अक्षय होता है। मतलब, पुण्य का जो फल मिलता है वह किसी भी प्रकार नष्ट नहीं होता। वहीं, व्यापारिक महत्व यह है कि लोग आज के दिन खरीदारी करते हैं। मान्यता है कि आज के दिन जहां भी निवेश किया जाता है, वह अत्यधिक शुभ फलदायी होता है।

हिंदू धर्म की बेहद पावन तिथियों में एक है अक्षय तृतीया। न सिर्फ हिंदू बल्कि जैन धर्म में भी अक्षय तृतीया को हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसे अखाती तीज भी कहते हैं। अक्षय तृतीया पूरे उत्तर भारत यानी हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखण्ड और राजस्थान आदि जगहों पर हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। धर्म में इस तिथि का अलग महत्व है और  व्यापार में अलग। आज के दिन उत्तर भारत में लोग जमकर दान-पुण्य करते हैं। मान्यता है कि आज किए गए दान का फल अक्षय होता है। मतलब, पुण्य का जो फल मिलता है वह किसी भी प्रकार नष्ट नहीं होता। वहीं, व्यापारिक महत्व यह है कि लोग आज के दिन खरीदारी करते हैं। मान्यता है कि आज के दिन जहां भी निवेश किया जाता है, वह अत्यधिक शुभ फलदायी होता है।

अक्षय तृतीया खरीदारी का महत्व

लंबे समय तक अक्षय तृतीया का होने का मतलब है कि लोगों को दान-पुण्य, धार्मिक कार्यों सहित नया काम शुरू करने और खरीदारी करने के लिए अधिक समय मिलेगा। आप दिन भर में जब चाहें दान-पुण्य और खरीदारी कर सकते हैं। इस पर शुभ संयोग यह भी है कि अक्षय तृतीया पर दो स्थायी लग्न, सिंह और वृश्चिक मिल रहे हैं जो आपकी खरीदारी और पुण्य को स्थायी बनाने वाले हैं।

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क्यों मनाई जाती है अक्षय तृतीया?

हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया को लेकर कई मान्यताएं हैं। जिसमें से ये कुछ हैं :-

– भगवान विष्‍णु के छठें अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम का जन्‍म हुआ था। परशुराम ने महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी के घर जन्‍म लिया था। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्‍णु की उपासना की जाती है। इसदिन परशुरामजी की पूजा करने का भी विधान है।

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– इस दिन मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरीत हुई थीं। राजा भागीरथ ने गंगा को धरती पर अवतरित कराने के लिए हजारों वर्ष तक तप कर उन्हें धरती पर लाए थे। इस दिन पवित्र गंगा में डूबकी लगाने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

– इस दिन मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है। इस दिन गरीबों को खाना खिलाया जाता है और भंडारे किए जाते हैं। मां अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है।

– अक्षय तृतीया के अवसर पर ही म‍हर्षि वेदव्‍यास जी ने महाभारत लिखना शुरू किया था। महाभारत को पांचवें वेद के रूप में माना जाता है। इसी में श्रीमद्भागवत गीता भी समाहित है। अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता के 18 वें अध्‍याय का पाठ करना चाहिए।

– बंगाल में इस दिन भगवान गणेशजी और माता लक्ष्मीजी का पूजन कर सभी व्यापारी अपना लेखा-जोखा (ऑडिट बुक) की किताब शुरू करते हैं। वहां इस दिन को ‘हलखता’ कहते हैं।

– भगवान शंकरजी ने इसी दिन भगवान कुबेर माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने की सलाह दी थी। जिसके बाद से अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और यह परंपरा आज तक चली आ रही है।

– अक्षय तृतीया के दिन ही पांडव पुत्र युधिष्ठर को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी हुई थी। इसकी विशेषता यह थी कि इसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था।

अक्षय तृतीया का क्या है महत्व?

अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य करने का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया के दिन कम से कम एक गरीब को अपने घर बुलाकर सत्‍कार पूर्वक उन्‍हें भोजन अवश्‍य कराना चाहिए। गृहस्‍थ लोगों के लिए ऐसा करना जरूरी बताया गया है। मान्‍यता है कि ऐसा करने से उनके घर में धन धान्‍य में अक्षय बढ़ोतरी होती है। अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर हमें धार्मिक कार्यों के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्‍सा दान करना चाहिए। ऐसा करने से हमारी धन और संपत्ति में कई गुना इजाफा होता है।

18 अप्रैल को अक्षय तृतीया के पावन अवसर गंगोत्री और यमनोत्री धाम के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। शीतकाल के छह माह के अवकाश के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित मां यमुना और मां गंगा के पवित्र स्थलों में चहल पहल शुरू हो जाएगी।

2 thoughts on “अक्षय तृतीया और इनका महत्व

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